Rajasthan ki kala sanskriti (राजस्थानी चित्रकला शैली) Part-1
दोस्तों हम राजस्थान की कला संस्कृति (Rajasthan ki kala sanskriti) में राजधानी चित्रकला शैली का अध्ययन करेगे, जिसमें आपको राजधानी चित्र शैलियों का आरम्भिक इतिहास, चित्रकला का भागो में विभाजन, राजस्थानी चित्रकला का स्कूलों में बंटवारा व मेवाड़ स्कूल की चित्र शैलियों का अध्ध्यन करेगें, जिससे आपको राजस्थानी कला एवं सस्कृति (Rajasthani art and culture) को समझने में मदद मिलेगी।
चित्रकला :-
- राजस्थान के सर्वाधिक प्राचीन उपलब्ध चित्रित ग्रन्थ जैसलमेर भण्डार में 1060 ई. के ’ओध नियुत्ति वृत्ति’ एवं ’दस वैकालिका सूत्र चूर्णि (इसे भारतीय कला दीप स्तम्भ माना जाता है।)’ मिले है।
- राजस्थानी चित्रकला का उद्गम स्थल मेवाड़ व जनक महाराणा कुम्भा माना जाता है (15वीं से 16वीं शताब्दी के मध्य) एवं आरम्भिक मूख्य केंद्र बूंदी माना जाता है।
- भारत मंे चित्रकला का जनक – राजा रवि वर्मा।
- आधूनिक चित्रकला का श्रेय कुन्दन लाल मिस्त्री को जाता है।
- तिब्बती इतिहासकार तारानाथ ने मरूप्रदेश (मारवाड़) में 9वीं शताब्दी में श्रृंगधर नामक चित्रकार की चर्चा की, लेकिन उस समय के चित्र आज उपलब्ध नहीं है।
- राजस्थानी चित्रकला का सबसे पहला वैज्ञानिक विभाजन स्व. आनन्द कुमार स्वामी ने राजपुत पेन्टिग नामक पुस्तक में सन् 1916 में किया।
राजस्थानी चित्रकला का भागो में विभाजन-
- भित्ति चित्र – भित्ति, देवरा, पथवारी
- कपडे़ पर निर्मित चित्र – पट चित्र, पिछवाई व फड़ आदि।
- लकड़ी पर निर्मित चित्र – कावड़ व खिलौने
- कागज पर निर्मित चित्र – पाने
- पक्की मिट्टी पर निर्मित चित्र – मृदपात्र, लोकदेवता, देवियां व खिलौने।
- राज्य में मीणा जाति राष्ट्रय पक्षी मोर से अधिक लगाव के कारण ’’मोरड़ी माँडना’ उनकी परम्परा बन गई।
- आहड़ में सन् 1592 ई. में लिखित व 104 चित्रों से सुसज्जित ग्रंथ ’ढोला मारू री चैपाई’ मेवाड़ शैली का एक महत्त्वपूर्ण तिथियुक्त सचित्र ग्रंथ है। यह ग्रंथ राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में संग्रहित है।
- राजस्थान की शैलियों को चार स्कूलों में बाँटा गया है-
1. मेवाड़ स्कूल – उदयपुर शैली, नाथद्वारा शैली, देवगढ़ शैली, चांवड शैली।
2. मारवाड़ स्कूल – जोधपुर शैली, बीकानेर शैली, किशनगढ़ शैली, जैसलमेर शैली, अजमेर शैली, नागौर शैली।
3. ढूँढ़ाड़ शैली – आमेर शैली, जयपुर शैली, अलवर शैली, उणियारा शैली, करौली शैली, शेखावाटी शैली।
4. हाड़ौती स्कूल – बूँदी शैली, कोटा शैली, झालावाड़ शैली।
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Rajasthani art and culture (राजस्थानी कला एवं सस्कृति )
मेंवाड़ शैली (उदयपुर शैली) –
- मेवाड़ शैली का प्रारम्भ कुम्भा का काल माना जाता है।
- यह राजस्थान की मूल तथा प्राचीन शैली मानी जाती है।
- मेवाड़ शैली का स्वर्णकाल महाराणा जगतसिंह प्रथम का काल माना जाता है
- 1260-61 ई. में श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णि नामक चित्रित ग्रंथ इस शैली का प्रथम उदाहरण है। इस चित्र को चित्रित कमलचन्द्र ने (तेजसिंह के काल में) और आहड़ (उदयपुर) से प्राप्त हुआ।
- प्रमुख कलाकार – साहिबुद्दीन, मनोहर, कृपाराम, उमरा।
- प्रमुख रंग – पीला और लाल रंग प्रधान रंग।
- चित्र – रामायण, गीत गोविन्द, महाभारत, रसिकप्रिया, कादंबरी, पंचतंत्र, रागमाला बारामासा आदि विषय है।
- विशेषता – मीन नेत्र, छोटी ठोडी, घुमावदार व लम्बी अंगुलियां, लाल पीले रंग की प्रचूरता, अलंकार बाहुल्य है।
- महाराणा राजसिंह के शासनकाल में साहिबदीन ने 1655 ई. में शूकर क्षेत्र महात्म्य, 1659 ई. में भ्रमरगीत सार एवं गीत गोविन्द का चित्रांकन किया।
- महाराणा हमीरसिंह द्वितीय के समय में बड़े पन्नों पर चित्रांकन की परम्परा की शुरूआत हुई। इस समय शिकार के दृश्यों व विभिन्न त्योहारों के चित्र बने।
- कलीला, दमना इस शैली के दो प्रमुख पात्र है।
- महाराणा जयसिंह के समय सूरसागर, पृथ्वीराज रासौ, सारंगधर, रघुवंश, रसिक प्रिया, रामायण व महाभारत का चित्रांकन हुआ।
- पंचतंत्र के अरबी अनुवाद कलीला दमना और मुल्ला दो प्याजा के फारसी लतीफो पर आधारित लघुचित्र केवल मेवाड़ शैली में ही बने है।
- कदम्ब वृक्ष व हाथी का चित्रण प्रधान है।
- चितेरों की ओवरी (तस्वीरां रो कारखानो) नाम से राजमहल में महाराणा जगतसिंह प्रथम ने कला विधालय स्थापित किया। ’चितारो की ओवरी’ का प्रमुख चित्रकार ’दरोगा’ कहलाता था।
- राजस्थान में सर्वप्रथम अजंता चित्रशैली का प्रभाव मेवाड़ चित्रशैली पर पड़ा।
Rajasthani art and culture (राजस्थानी कला एवं सस्कृति ) के नोटस की PDFआपको लास्ट में मिल जायेगी, जिसे डाउनलोड जरूर कर लीजिए-
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नाथद्वारा शैली:-
- महाराणा राजसिंह के द्वारा श्रीनाथजी की स्थापना (1670) के बाद श्रीनाथजी वल्लभाचार्य वैष्णवों का एक मुख्य केन्द्र बन गया।
- नाथद्वारा के कलाकार रंग सम्मिलित नहीं करते बल्कि रंगों का समन्वय करते है।
- नाथद्वारा शैली व्यवसायिकता की ओर अग्रसर हुई।
- पिछवाई – इसके अन्तर्गत उदयपुर व नाथद्वारा में श्रीनाथजी की प्रतिमा के साथ विविध उत्सवों, पर्वों व दैंनिक दर्शनों के समय दीर्घाकार कपड़े पर विविध व पर्व विषयक चित्रण किया जाता है।
- नाथद्वारा शैली राजपुत शैली, मेवाड़ शैली, किशनगढ़ शैली का अनोखा कोकटेल है।
- गणगौर की सवारी, ढ़ोला-मारू, गोवर्द्धन पूजा, रासलीला, राजा की सवारी आदि विषयों पर इसमें चित्र बनायें जाते है।
- रंग – हरे व पीले का अधिक प्रयोग। पृष्ठभूमि मंे नींबुआ पीला रंग।
- प्रमुख चित्रकार – नारायण, चतुर्भुज, घासीराम, उदयराम।
- महिला चित्रकार – कमला, इलायची।
- केले के वृक्ष को प्रधानता। पिछवाई व भित्ति चित्रण प्रमुख
- इसे वल्लभ शैली भी कहा जाता है।
Rajasthan ki kala sanskriti के नोटस के बारे में आप कमेंट में जरूर बतायें-
देवगढ़ शैली:-
- इसका विकास देवगढ़ के रावत द्वारकादास चूंड़ावत द्वारा हुआ।
- रंग -पीले रंग का बाहुल्य।
- चित्रकार – कँवला, चोखा, बैजनाथ।
- चित्र – प्राकृतिक परिवेश, शिकार के दृश्य, अन्तःपुर, राजसी ठाठबाट, श्रृंगार, सवारी आदि।
- सर्वप्रथम डाॅ. श्रीधर अंधारे ने इस शैली को प्रकाशमान किया।
- यहां के भित्तिचित्र अजारा की ओवरी व मोतीमहल में विद्यमान है।
चावंड उपशैली :-
- महाराणा प्रताप व महाराणा अमरसिंह के समय विकास।
- चित्रकार – नसीरदीन या निसरदी
- रागमाला चित्रित प्रमुख ग्रन्थ, जो अमरसिंह के समय 1605 ई. का है।
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